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जेनेटिक बीमारियों का पता कैसे लगाया जाता है? पूरी जानकारी:

जेनेटिक बीमारियों के निदान की ज़रूरत क्यों होती है?

  • जेनेटिक यानी आनुवंशिक बीमारियाँ हमारे जीन या डीएनए में मौजूद बदलाव (म्यूटेशन) की वजह से होती हैं।
  • कई बार इनके लक्षण जन्म के समय नहीं दिखते बल्कि धीरे-धीरे बढ़ते हैं।
  • सही समय पर पहचान होने से इलाज की दिशा तय होती है,
  • परिवार में इसके फैलाव का अनुमान लगता है और आगे होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य की योजना बनाई जा सकती है।

फैमिली हिस्ट्री क्यों जरूरी है?

  • जेनेटिक रोगों की पहचान की पहली सीढ़ी फैमिली हिस्ट्री लेना है।
  • डॉक्टर परिवार के सदस्यों में पहले से मौजूद बीमारियों, बार-बार होने वाली समस्याओं,
  • जन्म दोष या असामान्य पैटर्न की जानकारी लेते हैं।
  • ये संकेत देते हैं कि किसी खास जेनेटिक टेस्ट की ज़रूरत है या नहीं।

फिज़िकल एग्ज़ामिनेशन से क्या पता चलता है?

  • शारीरिक जांच में डॉक्टर शरीर के विकास, त्वचा, बाल, आँखों, अंगों और तंत्रिका तंत्र के बदलाव देखते हैं।
  • कुछ जेनेटिक रोगों के खास संकेत जैसे चेहरे की संरचना,
  • हड्डियों की बनावट या त्वचा के दाग से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि समस्या आनुवंशिक हो सकती है।

जेनेटिक टेस्टिंग कैसे की जाती है?

  • जेनेटिक टेस्टिंग में खून, लार, ऊतक या एम्नियोटिक फ्लुइड (गर्भस्थ शिशु के आसपास का तरल) से डीएनए निकाला जाता है।
  • इसके बाद जीन, क्रोमोसोम या प्रोटीन का विश्लेषण करके पता लगाया जाता है कि कोई म्यूटेशन मौजूद है या नहीं।
  • यह सबसे सटीक तरीका माना जाता है।

प्रीनैटल टेस्टिंग क्यों की जाती है?

  • गर्भावस्था के दौरान प्रीनैटल टेस्टिंग उन शिशुओं के लिए की जाती है जिनमें जेनेटिक रोग का खतरा होता है।
  • अम्नियोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैंपलिंग
  • जैसे टेस्ट से बच्चे के क्रोमोसोम और जीन की जांच की जाती है ताकि जन्म से पहले ही बीमारी का पता लग सके।

न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग से क्या फायदा होता है?

नवजात शिशुओं में जन्म के बाद कुछ जेनेटिक रोगों की जांच की जाती है, जैसे पीकेयू (Phenylketonuria) या हाइपोथायरॉइडिज़्म। इसका फायदा ये होता है कि इलाज जल्दी शुरू किया जा सके और गंभीर नुकसान से बचा जा सके।

डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर (DTC) टेस्ट क्या हैं?

  • आजकल कुछ कंपनियाँ घर बैठे जेनेटिक टेस्टिंग की सुविधा देती हैं।
  • लोग अपने डीएनए के बारे में जानने के लिए सैंपल भेजते हैं।
  • लेकिन ये टेस्ट हमेशा मेडिकल डायग्नोसिस के लिए भरोसेमंद नहीं होते।
  • नतीजों की पुष्टि डॉक्टर द्वारा किए गए क्लिनिकल टेस्ट से ही करनी चाहिए।

जेनेटिक काउंसलिंग का क्या महत्व है?

जेनेटिक टेस्ट के नतीजों को समझने के लिए जेनेटिक काउंसलर की मदद ली जाती है। वे बताते हैं कि बीमारी कैसे फैली, बच्चों में खतरा कितना है, आगे क्या कदम उठाने चाहिए, और परिवार की योजना बनाते समय किन सावधानियों की ज़रूरत है।

क्या हर जेनेटिक म्यूटेशन बीमारी पैदा करता है?

ज़रूरी नहीं कि हर म्यूटेशन बीमारी लाए। कुछ बदलाव नॉर्मल वैरिएंट होते हैं। इसलिए किसी टेस्ट में म्यूटेशन मिलने के बाद उसके असर को समझना जरूरी है। यही कारण है कि केवल रिपोर्ट देखकर निष्कर्ष निकालना गलत हो सकता है।

सही समय पर निदान क्यों जरूरी है?

  • जेनेटिक रोगों की पहचान जितनी जल्दी होती है, इलाज और प्रबंधन उतना ही बेहतर हो पाता है।
  • कई बीमारियाँ ऐसी हैं जिन्हें समय रहते डाइट, दवाइयों या सर्जरी से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • सही निदान परिवार की अगली पीढ़ी को बचाने में भी मदद कर सकता है।

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